हिंदी में है बात जो,नहीं किसी में और।
चर्चा हिंदी में अगर, मुस्काता हर दौर ।।
राष्ट्रभाषा बनी नहीं,राजभाषा कहाय।
हिंदी की ये पीर अब, बिलकुल सही न जाये।।
इधर देश में फैलती ,उधर विदेशी दौड़।
मन की सुअभिव्यक्ति में, सचमुच है बेजोड़।।
कविता, ग़ज़लें ,लघुकथा, सब हिंदी की देन।
दोहे हो या कुंडली , मिले पढ़े से चैन।।
सूर, रसखान व तुलसी, मीरा रब से प्यार।
कबीर, केशव ,जायसी, सब हिंदी के आधार।।
हिंदी की उन्नति निमित, चल विदेश हो आएं।
हिंदी बढ़े नहीं बढ़, अपन नाम बढ़ जाये।।
हिंदी हिंदुस्तान की, हस्ती का है गान।
हिंदी की उन्नति करें ,बढे देश का मान।।
हिंदी भारत प्राण है, उस बिन है न उसांस।
हिंदी अवनति से जुड़ा , है भारत का ह्रास।।
निज स्वदेश निज भाष पर, अगर न है अभिमान।
लगता हो जीवित भले, शेष कहाँ सम्मान।।
लेखक - प्रबोध मिश्र
साभार- पत्रिका अख़बार (14/09/2015)